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एक और शाम

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हमेशा अकेले होने से बचता रहता हूँ, खाली बैठने से भागता रहता हूँ। आज बरसात ने रोक लिया है बाहर जाने से, तो आज बैठा हूँ अकेला कमरे में। कोशिश कर रहा था थोड़ी देर कुछ न सोचूँ, कुछ न करूँ, तभी एक आवाज़ आने लगी कानों में। कल रात जैसी गानों की या नीलेश मिसरा की नहीं, बल्कि उस आवाज़ ने मुझे एहसास दिलाया कि मैं सोचता हूं कि मैं अकेला बैठा हूँ, दरअसल मैं बिल्कुल अकेला नहीं होता। कोई न कोई होता है आस पास। वो कोई, कोई आत्मा नही होती, जीव ही होता है। वो आवाज़ थी एक मच्छर के भिनभिनाने की। अब सोचा था कि कुछ नहीं करना तो हाथ चला कर हटाया नही उसको, सुना थोड़ी देर तो लगा कि वो कुछ कह रहा है। चलो सुन ही लेते हैं आज उसको। वो मुझसे कह रहा था कि शुक्रिया, आपके यहाँ कुछ जलाया हुआ नहीं है हम लोगों का दम घुटवाने के लिए और न ही कुछ छिड़का हुआ है। आपसे एक मदद चाहिए, हम लोग हमेशा तो आपके ही कमरे में नहीं रहेंगे न, तो अगर आप हमें समझा सके कि इन दम घोंट देने वाले पदार्थों का क्या करें, या आप कुछ मदद कर सकें हम इनसे लड़ने में, तो अच्छा होगा। मैंने सोचा, ये लोग कितने दुखदायी हालातों से झूँझ रहे हैं, क्यों न इनकी कोई मदद कर दी जाए। पर उससे पहले मेरे मन मे कुछ सवाल आये, मैंने एक हाथ आगे बढ़ाया, उसको बैठने के लिए कहा। वो आ कर मेरे हाथ पर बैठ गया। मैंने उससे पूछा "तुम मुझसे ही क्यों मदद माँगने आये हो?" तो उसने कहा "हम सबसे मदद माँगते हैं, हमारे लीडर ने हमें बोला है कि इंसान की बनाई इस चीज़ से तुम्हें इंसान ही बचा सकता है, पर संभल कर, कुछ इंसान अच्छे होते हैं तो कुछ बुरे। तुम उनके पास जा रहे हो, मतलब सर पर कफ़न बाँध कर। और ऐसे ही हमारे बहुत सारे भाई आप लोगों के हाथों शहीद हुए हैं, मैं चाहता हूँ कि आप हमारी तरफ मदद का हाथ बढ़ाएँ, जिससे हमारे भाइयों का घुट कर मरने और शहीद होने का सिलसिला ख़त्म हो सके।" और इतना कह कर उसने मेरी तरफ अपना हाथ बढ़ा दिया| फिर मैंने अपना हाथ उसके हाथ पर रख दिया और मैं खुद को हैवानियत में हिटलर से एक कदम आगे महसूस कर रहा हूँ कि जो मदद माँगने आया हो, उसकी लाश तक घर लौटने नहीं दी!

By Akshay Kurseja 

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एक शाम


इस शाम के बारे में क्या कहूँ! ये शाम कुछ अलग है, ये एक दुर्लभ शाम है| कुछ ख़ास नही था इसमे पर सब कुछ आम से कुछ हटके था। सुबह शुरू हुई उस चीज़ से जो करना मुझे बहुत पसंद है। थिएटर प्ले की रिहर्सल। दिन भर ऑफिस में भी दिन अच्छा सा रहा। आज तन्खवाह आने का दिन भी था।😝 शाम को बारिश हुई। चाय की इच्छा हुई और बारिश में नही भीगना चाहता था तो चाय आर्डर कर ली। कहाँ से कहाँ आ गए हैं हम। 😅 अब जब खाना खा कर सोने लगा तो मेरी खिड़की से बाहर कहीं से आवाज़ आ रही थी, पुराने गाने बजने की। मेरे पसंदीदा गाने! गाना ख़त्म हुआ तो आवाज़ आयी "बात पे बात पे अपनी ही बात कहता है,मेरे अंदर मेरा छोटा सा शहर रहता है"। बस अपनी बिस्तर से उठने की इच्छा नही है, नही तो मैं उस इंसान को ढूँढ़ कर उससे बात करना चाहता हूँ, जो हिंदी प्रधान क्षेत्रों में भी ज़्यादा न सुने जाने में रेडियो सीरियल को यहाँ सुन रहा है, हैदराबाद में| नीलेश मिसरा मेरे भी फेवरेट हैं। और अब "यादों का इडियट बॉक्स" ख़त्म हुआ "बस इतनी सी थी ये कहानी" के साथ| अब गाना बज रहा है "जीवन के दिन छोटे सही, हम भी बड़े दिलवाले" ❤️

By Akshay Kurseja 

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Khamoshiii


Khasmosh ho jaate hai saare raaste
Un khamosh lamho me mai kitaab k panne palat ti hu.
Yun to tjhe pura jaanti hu mai
Par har panne me ek naya roop paati hu tera.
Ab kittab k panno par kisi or ka naam likh dia hai tune
Na jane kab or kahan mjhe khudse dur kr dia hai tune.
Jana zaroori ho gya hai ab is raaste se dur
Halato ne kar dia hai mjhe itta majboor.
Mere jaane se kch nahi bdlega
Firse vohi sooraj niklega or chamkega.
Teri khushi ka raasta ab badal gya hai
Isliye tujhse dur jana hi munasif ban gya hai.
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