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आखिर दोषी कौन??



हताशा की भी क्या सीमा होगी,
निराशा भी कितनी गहरी होगी।
मायूसी का बाँध समेटे अपने अंदर,
वह ज़िंदगी भी कितना लड़ी होगी।
दोष उसका नहीं जो खेल ना पाया,
दुहरे मुखोटों को झेल ना पाया।
दोषी तो वह समूह है जो घमंड में डूबा है,
अपनी असंवेदनशीलता में उसकी चुप्पी को जो समझ ना पाया।



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