एक अजनबी चेहरा था तेरा न जाने क्यों मझे अपना सा लगा। दूर से देखती थी तो लगता था क्या राज़ छुपा है इनमे गहरा। डर लगता था तुम्हारे पास आने में क्योंकि हिम्मत नहीं थी सच को अपनाने में। कोई डोर से बंध गयी थी मैं तुमसे न जाने क्या कशिश थी उन आँखों में। पास आई तो जाना तुम कोई अनजाने नहीं मेरे अपने ही हो में ही गलत राह पर थी जिसने देर लगादी थी तुम तक आने में। तुम जैसे दोस्त पाकर मेरी ज़िंदगी सँवर गयी एक सुखी कलि थी फूल बनकर खुशबू बिखर गई। तुम्हारे आने से राह में फूल खिल गए कांटे सारे सूख गए और हमारे दिल मिल गए।
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एक अजनबी चेहरा
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