पहले मैं सोचता था 'क्या लिखूँ'?
फिर ख़्याल आने लगा कि क्यों लिखूँ? किसके लिए?
तुम्हारे लिए?
तुम समझ जाओगे?
तुम्हे पता भी है कि किसी लिखाई में समझना क्या होता है? अरे तुम आज के ज़माने के लोग हिंदी के शब्दों के मतलब समझ जाओ न, ये ही बहुत होगा।
पर एक बात बताऊँ?
एक लेखक शब्द नहीं लिखता, वो जज़्बात पिरोता है स्याही के धागे में.. हाह! जज़्बात, तुम क्या समझो जज़्बात क्या होते हैं| गलती भी तो मेरी ही है जो मैं पत्थर में इंसान ढूँढने लगा था| साला, तुम लोगों को जज़्बात समझ क्यों नही आते? इतना मुश्किल तो नहीं है इनको समझना!!
उससे कहा सीधे लब्ज़ों में कि मोहब्बत है, तो वो जज़्बात नहीं समझी और चली गयी| पिताजी से कहा कि इंजीनियरिंग नहीं करनी, तो वो नहीं समझे जज़्बात और उनकी इज़्ज़त का ध्यान रखते हुए करनी पड़ी| दोस्तों से कहा कि ज़रूरत है तुम्हारी, मत जाओ तो वो किनारा कर गए| सीधे शब्दों में जो जज़्बात होते हैं, न जाने तुम लोगों के लिए इतने मुश्किल क्यों होते हैं!
कोई नहीं समझा जब समझना था|| दो शब्दों में बोली गयी बातों के पीछे के जज़्बात नहीं समझे| आज बिना कुछ बोले भी वो समझ रही है जज़्बात, पिताजी भी समझ रहे हैं और दोस्त भी शायद! सब समझ रहे हैं अब, अब जब किसी को समझाने की ज़रूरत नहीं है, न ही मैंने किसी को दो आसान शब्दों में समझाने की कोशिश ही करी है। अब सब समझ रहे हैं जब मैं मेरे कमरे में बिस्तर पर गिरे हुए stool से दो कदम ऊपर पैरों को लटका कर पंखे से झूला झूल रहा हूँ| सब समझ रहे हैं आज, अब जब ज़रूरत नही है समझने की मेरे "जज़्बात"!!
फिर ख़्याल आने लगा कि क्यों लिखूँ? किसके लिए?
तुम्हारे लिए?
तुम समझ जाओगे?
तुम्हे पता भी है कि किसी लिखाई में समझना क्या होता है? अरे तुम आज के ज़माने के लोग हिंदी के शब्दों के मतलब समझ जाओ न, ये ही बहुत होगा।
पर एक बात बताऊँ?
एक लेखक शब्द नहीं लिखता, वो जज़्बात पिरोता है स्याही के धागे में.. हाह! जज़्बात, तुम क्या समझो जज़्बात क्या होते हैं| गलती भी तो मेरी ही है जो मैं पत्थर में इंसान ढूँढने लगा था| साला, तुम लोगों को जज़्बात समझ क्यों नही आते? इतना मुश्किल तो नहीं है इनको समझना!!
उससे कहा सीधे लब्ज़ों में कि मोहब्बत है, तो वो जज़्बात नहीं समझी और चली गयी| पिताजी से कहा कि इंजीनियरिंग नहीं करनी, तो वो नहीं समझे जज़्बात और उनकी इज़्ज़त का ध्यान रखते हुए करनी पड़ी| दोस्तों से कहा कि ज़रूरत है तुम्हारी, मत जाओ तो वो किनारा कर गए| सीधे शब्दों में जो जज़्बात होते हैं, न जाने तुम लोगों के लिए इतने मुश्किल क्यों होते हैं!
कोई नहीं समझा जब समझना था|| दो शब्दों में बोली गयी बातों के पीछे के जज़्बात नहीं समझे| आज बिना कुछ बोले भी वो समझ रही है जज़्बात, पिताजी भी समझ रहे हैं और दोस्त भी शायद! सब समझ रहे हैं अब, अब जब किसी को समझाने की ज़रूरत नहीं है, न ही मैंने किसी को दो आसान शब्दों में समझाने की कोशिश ही करी है। अब सब समझ रहे हैं जब मैं मेरे कमरे में बिस्तर पर गिरे हुए stool से दो कदम ऊपर पैरों को लटका कर पंखे से झूला झूल रहा हूँ| सब समझ रहे हैं आज, अब जब ज़रूरत नही है समझने की मेरे "जज़्बात"!!
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